त्रिभुवन अस्सी के दशक से पत्रकारिता की राह पर लगभग चार दशक बिता चुके हैं। हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर शिक्षा पाने बाद कानून का अध्ययन उनकी दृष्टि देश के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश के प्रति को विविध-आयामी बनाता है।
उनके काम का दायरा सुदूर पंचायत केंद्रों से लेकर देश की राजधानी तक फैला हुआ रहा है। दैनिक जागरण में कमलेश्वर के साथ संपादकीय टीम में रहे। बीबीसी के लिए राजस्थान से कवरेज किया। राजनीति, कृषि अर्थव्यवस्था और साहित्य-संस्कृति के अनेक प्रासंगिक विषयों पर उन्होंने असरदार रिपोर्ट लिखी हैं।
दो दशक वे दैनिक भास्कर से जुड़े रहे। वहाँ उन्होंने यूनिट एडिटर, कार्यकारी राजनीतिक संपादक का दायित्व निभाया। लंबे समय तक दिल्ली में इसी अखबार के राजस्थान ब्यूरो प्रमुख रहे। फिर उदयपुर संस्करण के संपादक। उन्होंने राजनीतिक रिपोर्टिंग में एक खास शैली विकसित की है। नौकरशाही की खबरों का स्वाद और स्वर दोनों बदलने का श्रेय उन्हें दिया जाता है।
उन्होंने दोहा (कतर) संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण सम्मेलन कॉप-18 और सिंगापुर में प्रवासी भारतीय दिवस के आयोजन मे देश के मीडिया का प्रतिनिधित्व किया । मंगोलिया और साउथ कोरिया के दौरे में राष्ट्रपति के साथ रहे । रचनात्मक और शोधपूर्ण लेखन की अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। 'भारतीय राष्ट्रवाद के नव परिप्रेक्ष्य', 'डंकल प्रस्ताव : मिथक और यथार्थ' चर्चित रही हैं । 'अछूतों की ऐतिहासिक' भूमिका प्रकाशनाधीन है। 'शूद्र' (86 पेज लंबी एक कविता की पुस्तक) और 'कुछ इस तरह आना' उनके कविता संग्रह हैं।